श्रेष्ठ संवेदनशील समाज के निर्माण में साहित्य की मुख्य भूमिका






दिनांक 24 सितंबर 2024 को जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान, पुखरायां,कानपुर देहात द्वारा 'शिक्षा में साहित्य की भूमिका' विषय पर हिंदी संगोष्ठी का आयोजन किया प्राचार्य श्री राजू राणा के मार्गदर्शन में किया गया। संगोष्ठी का मुख्य उद्देश्य संगोष्ठी में मौजूद शिक्षकों एवं छात्र-छात्राओं के सम्मुख शिक्षा और साहित्य के परस्पर अंतर्संबंध को उजागर करना था। मुख्य वक्ता के रूप में आए विक्रमाजीत सिंह सनातन धर्म महाविद्यालय,कानपुर के हिंदी विभाग के प्रोफेसर एवं साहित्यकार डॉ राकेश शुक्ल ने संगोष्ठी को संबोधित किया।उन्होंने बताया कि कैसे साहित्य श्रेष्ठ संवेदनशील समाज के निर्माण में मुख्य भूमिका निभाता है| मुख्य वक्ता श्री राकेश शुक्ल जी ने साहित्यकार निर्मल वर्मा की पंक्तियों का उल्लेख करते हुए कहा कि साहित्य बिना दीवारों का वह घर है जहाँ हम पहली बार अपने मनुष्यत्व से साक्षात्कार करते हैं|उन्होंने अपनी स्वरचित कविता 'विद्या परंपरा के वाहक शिक्षक' के पाठ से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया| मंच पर वरिष्ठ प्रवक्ता श्री पंकज यादव,प्रवक्ता एवं आयोजक डॉ प्राची शर्मा,प्रवक्ता श्री मती अंशू सिंह आदि उपस्थित रहे। 

मुख्य वक्ता  प्रोफेसर राकेश शुक्ल ने अपने ओजस्वी उद्बोधन में साहित्य को शिक्षा का सबसे अच्छा संवाहक बताया। उन्होंने कहा कि शिक्षा में साहित्य की भूमिका को कदापि नकारा नहीं जा सकता । शिक्षा जीवन के साथ-साथ निरंतर चलती रहती है । शिक्षा और साहित्य दोनों ही मानवीय अभिवृद्धि के अत्यंत महत्वपूर्ण पक्ष हैं। कार्यक्रम की संचालक डाॅ० प्राची शर्मा ने शिक्षकों से कहा कि हमें अपनी भाषा, विषय और साहित्य से प्रेम करना चाहिए क्योंकि हम शिक्षक ही भाषा, संस्कृति और साहित्य के संवाहक हैं| 

 संगोष्ठी का सफल संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन प्रवक्ता डॉ प्राची शर्मा ने किया। इस दौरान विभिन्न शिक्षक गण एवं संस्थान के छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।